Dr. D.C. Wadhwa & Ors. vs. State of Bihar & Ors. case of 1986

 The Dr. D.C. Wadhwa & Ors. vs. State of Bihar & Ors. case of 1986 is a cornerstone in the Indian judicial history, highlighting the delicate balance of power between the executive and legislative branches of government . The case stemmed from a practice that had become routine for the Bihar government: the re-promulgation of ordinances without legislative approval, a process that Dr. D.C. Wadhwa, an economics professor, found to be a subversion of democratic principles . The Supreme Court's decision in this case was a resounding affirmation of constitutional law and its supremacy over executive convenience. By declaring the practice of re-promulgating ordinances without legislative consent as unconstitutional, the court reinforced the necessity of legislative scrutiny and the impermanence of ordinances, which are meant to be emergency measures, not a backdoor for enacting laws. This landmark judgment serves as a reminder of the importance of checks and balances within

"भारतीय कॉपीराइट अधिनियम 1957"

क्या आप भी एक लेखक,चित्रकार,गीतकार,कहानीकार,या फिर एक ओरिजिनल आर्टिस्ट या कलाकार हैं जिन्हें अपनी रचनाएँ अलग-अलग कलाओं के माध्यम से व्यक्त करना बेहद पसंद है। लेकिन उन्हें साथ ही ये भी चिंता रहती है कि कहीं कोई उनकी लिखी हुई कविता,गीत या कोई भी स्वरचित कला को चोरी न कर ले, या फिर उसकी कॉपी न कर ले। तो दोस्तों अब परेशान होने की जरूरत नहीं । आप बिलकुल सही जगह पर आए हैं।
आज हम इसी विषय से जुड़े कुछ संवैधानिक कानून,धाराओं और अधिनियम के बारे में बात करेंगे।
               

जैसा कि आप सभी इस बात से वाकिफ़ हैं कि किसी की भी ओरिजिनल या स्वरचित कला की जानबूझकर कर कॉपी करना,बिना उसके असली रचयिता की इजाजत के उनकी रचनाओं का प्रयोग करना न सिर्फ पूर्णतः गलत है बल्कि इसे अपराध की श्रेणी में भी रखा गया है,और इसके लिए हमारे भारतीय संविधान में मुख्यता धारा 63 और 51ए लगाई जाती है,जिसकी विस्तृत जानकारी आपको यहां दी गयी है। 
➡️#अब आप सोच रहे होंगे कि धारा 63 होती क्या है?
तो चलिए जानते है धारा 63 के बारे में।
➡️"धारा 63" के अंतर्गत कॉपीराइट के जानबूझकर उल्लंघन के लिए दुष्प्रेरणा को दंडनीय अपराध घोषित किया गया है। इसके लिए दोषी को न्यूनतम 6 माह कारावास एवं पचास हजार रुपए के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। अधिकतम सजा तीन वर्ष के कारावास और दो लाख रुपए के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
➡️अब हम ये तो जान गए कि कॉपीराइट के जानबूझकर किए गए उलंघन की सज़ा क्या है । आपको तो पता ही होगा कि अधूरा ज्ञान कितना हानिकारक हो सकता है तो क्यों न इसके पीछे की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां भी अर्जित कर ली जाए। इसके पीछे का इतिहास भी तो जानना आवश्यक है। तो चलिए थोड़ा और सीखते हैं और अपनेआप को थोड़ा और ज्ञान अर्जित करने का मौका देते हैं।

****प्रिय मित्रों****
➡️ भारतवर्ष में प्रतिलिप्यधिकार या copyright के बारे में प्रतिलिप्यधिकार अधिनियम, 1957 (The Copyright Act, 1957) कानून  है।
1. भारत में कॉपीराइट कानून 1957 में पारित किया गया और इसे पूरे देश में लागू किया गया। 
इस अधिनियम का मूल उद्देश्य कॉपीराइट के मूल स्वामी को उसकी ओरिजिनल कलाकृति की नकल से रक्षा करना है।
2. ईस कानून के अंतर्गत इसका उद्देश्य वाणिज्यिकरण को बढ़ाबा देना नहीं बल्कि लेखकों, प्रकाशकों ,गीतकारों तथा उपभोक्ताओं के हितों में उचित संतुलन स्थापित करना था। 
3. कंप्यूटर, इंटरनेट आदि तकनीकी साधनों के इस दौर में लेखकों और प्रकाशकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए इसमें संशोधन के लिए भारत सरकार ने कॉपीराइट अधिकार संशोधन पत्र 2010 लाने का निर्णय लिया।
4. भारत में अब तक इस कानून में सात बार संशोधित हो चुका हैं।(1957,1983,1984,1992,1994,2010और 2012)
5. कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 51 के अनुसार यदि एक छायांकन फिल्म ने नाटकीय, साहित्यिक, कलात्मक या संगीतमय कार्य को दोबारा प्रस्तुत किया है तो यह कॉपीराइट का उल्लंघन होगा।

(ए) जब कोई भी व्यक्ति, इस अधिनियम के तहत कॉपीराइट के मालिक या कॉपीराइट के रजिस्ट्रार द्वारा दिए गए लाइसेंस के बिना या लाइसेंस की शर्तों के उल्लंघन में या इस अधिनियम के तहत किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा लगाए गए किसी भी शर्त के उल्लंघन में-
(i) कुछ भी करता है, ऐसा करने का विशेष अधिकार जो इस अधिनियम द्वारा कॉपीराइट के स्वामी को प्रदान किया गया है, या 
1 [(ii) लाभ के लिए किसी भी स्थान को जनता के लिए काम के संचार के लिए उपयोग करने की अनुमति देता है जहां ऐसा संचार काम में कॉपीराइट के उल्लंघन का गठन करता है, जब तक कि वह जागरूक नहीं था और उसके पास यह मानने का कोई उचित आधार नहीं था कि जनता के लिए ऐसा संचार कॉपीराइट का उल्लंघन होगा; या]
 1(ii) लाभ के लिए किसी भी स्थान को जनता के लिए काम के संचार के लिए उपयोग करने की अनुमति देता है जहां इस तरह के संचार से काम में कॉपीराइट का उल्लंघन होता है, जब तक कि वह जागरूक न हो और उसके पास विश्वास करने के लिए कोई उचित आधार न हो जनता के लिए ऐसा संचार कॉपीराइट का उल्लंघन होगा।
***न्यूज़पेपर पर यह अधिनियम लागू नही होगा***
 ➡️ प्रतिलिप्यधिकार या कॉपीराइट के अंतर्गत , यदि आप किसी गीत के लिरिक्स लिखते है,कहानी लिखते हैं, या कोई गाना संगीत-बद्ध करते है या फिर पेन्टिंग करते हैं (** इसमें सॉफ्टवेयर बनाना भी**) शामिल है। इसमें आपका प्रतिलिप्यधिकार या कॉपीराइट होगा। और यदि आप अपनी स्वरचित रचनाओं को किसी भी मीडियम चाहे इलेक्ट्रॉनिक हो या पेपर उनमें प्रकाशित करते हैं तो कोई भी व्यक्ति आपकी अनुमति के बिना आपकी रचनाओं का  प्रयोग नहीं कर सकता है। 
**उम्मीद है कि आप सभी को यह जानकारी पसंद आई होगी और आपने आज अपना कीमती वक़्त कुछ नया और महत्वपूर्ण सीखने में व्यतीत किया होगा।
यह पोस्ट आपको कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताइएगा। 🙏😊
                     
                    *****धन्यवाद*****

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