इस भीड़ में हर कोई गुमनाम है,
खुद की तलाश का न कोई अंजाम है।
जीए जा रहे है, कुछ इस तरह,
जैसे ज़िन्दगी का न कोई मुकाम है।
किस्मत हर बार ठोकरें देती है,
आशाओं के मोती बिखेरती है,
कभी लगता है अब बस हुआ,
वही फिर एहसास होता है कि,
एक बार और कोशिश करने में
हर्ज़ ही क्या है।
कभी-कभी सब समझते हुए भी,
हम अंजानो सा व्यवहार करते हैं।
क्योंकि हम भी किसी कसमकश में,
यूं ही जिए जा रहे हैं।
पता होते हुए भी की खुश नहीं हैं,
फिर भी मुस्कुराते हुए जिए जा रहे हैं।
इस आस में ,घने अंधेरों में भी रौशनी का
कोई सुराग बुलंद है।
इतनी आसानी से हारने वाले नहीं ,
हमारे हौसलों में उड़ान भरने के ख्वाब बन्द हैं।
बस समय का फेर ही है।
वरना हमसे ज्यादा लाजवाब कोई नहीं।
आज जहां हूँ, खुश तो नहीं पर सुकून जरूर है,
इसकी वजह...क्योंकि मैं कोशिश करने में विश्वास
करती हूँ।
ख्वाबों के टूटने के बाद ,
अपनी किस्मत के धागे दोबारा बुनती हूँ।
इस आस में कई अब उजाला दूर नहीं।
यकीन है,की अब मंज़िल दूर नहीं।
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