Quantum Mechanics at Scale: The 2025 Nobel Prize in Physics and the Rise of Engineered Quantum Reality

Image
  The   2025 Nobel Prize in Physics   stands as a landmark recognition in the ongoing evolution of quantum science. Awarded to   John Clarke ,   Michel Devoret , and   John Martinis , the prize honors their groundbreaking demonstration that   quantum mechanics isn’t confined to the microscopic;  it can govern large, engineered systems operating at macroscopic scales.                                     Their pioneering work, initiated at the  University of California, Berkeley  in the mid-1980s, transformed one of physics’ deepest philosophical questions into a tangible engineering reality. Can macroscopic systems composed of countless particles display quantum behavior such as tunneling, coherence, and quantization? Clarke, Devoret, and Martinis answered with an emphatic  yes . From Josephson Junctions to Artificial Atoms At the core of their ...

मर्यादा का घूँघट

पैदा होते ही फ़ीकी सी मुस्कान देख मैं रोई,
कूड़े की चादर ओढ़े, आँसूओं की मालाएँ पिरोई।
मिली किसी अनजान को,जिसने हृदय से मुझे लगाया,
कहा मुझे प्यारी सी बिटिया, लाडो कहकर खिलखिलाया।
तब जाकर माँ के स्पर्ष का कोमल ,एहसास मुझे हो आया,
मेरे सर पर ममता का आँचल जैसे लहराया।
बड़ी हुई,खेली-कूँदी और सखियों संग स्वांग रचाया।
यसोदा जैसी मैया से मैने खूब लाड़ लड़ाया।
समय का फेर फिर बदला छूटा मैया का साथ।
लो बड़ी हो गई मैं भी अब तो ,छूटे सारे अरमान।
रोका सबने टोका मुझको,तुम कहीं न बाहर जाना।
ओढ़ ये घूंघट मर्यादा का, रीत निष्ठा से निभाना।
यहाँ गिरी,फिर वहां गिरी ठोकरें मिली हज़ार।
न थमा ये ढोंग मर्यादा का, रूढ़ियों की चली तलवार।
न कदम रखे, घर के बाहर,न देखी बाहर की दुनिया।
बस चार दिवारी घर ही कि बन गयी अब तो मेरी दुनिया।
ऐसे मत पहनों,चलो अदब से,देख समाज गुरर्राएगा।
हँसो आहिस्ता, बैठो ढंग से तभी अदब तुममें समाएगा।
वो बुरी नज़र, वो बुरा व्यवहार उनका है जन्मसिद्ध अधिकार।
तुम तो हो समझदार ,बस संभल कर तुम्हे ही रहना है।
ज्यादा न कुछ तुमको बेटा इस दुनिया से कहना है।
निःशब्द रहो....बेटा , इस दुनिया से कुछ न कहना है....

सारे ज़माने की तोहमत,  हमें ही बुरा कहेंगे न!
इतना सब सहन किया लेकिन अब बहुत हुआ,
अब बहुत हुआ।
हमने भी बस कहा जगत से ,अब न होगा रोना-धोना।
न होगा ये ढ़ोंग-धतूरा। न झूठा अदब आडम्बर।
जब किया नही कुछ गलत तो सिर क्यों हम झुकाए।
हिम्मत से चलेंगे,आगे बढ़ेंगे,उड़ाने ऊंची भरेंगे।
है दम तो रोक के दिखलाओ।
हुम् भी किसी से कम तो नहीं।
कभी दुर्गा,कभी लक्ष्मी,कभी काली बन जाउंगी।
अब न सहन करूँगी मैं,सबको अब सबक सिखाऊंगी।
करनी है हमको अपने मन की ,न सहे किसी मनमानी।
अब हमने भी आवाज उठाई ,अपनी करने की ठानी।
न रुकेगी अब , न थके की अब ।
आवाज़ की ज्वाला सी आंधी, 
सुन लो ओ ज़माने के पहरेदारों ।
हमने भी त्रिशूल उठाया है।
शिक्षा से ,बुद्धि से, ज्ञान का दीप जलाएंगे।
हम हर अंधेरे को अपनी काबिलियत से मिटाएंगे।
मैं बेटी हूँ, तो बहन कभी ,कभी हूँ माँ का रूप ।
मत जगाओ अंदर की ज्वाला ,में शांत हूँ अनंत अनूप।
मैं शांत हूँ अनंत अनूप। मैं शांत हूँ अनंत अनूप......

Comments

Popular posts from this blog

Is the Sanctity of Parliamentary Debate, Which Lies at the Core of Democratic Decision-Making, Being Compromised?

The Jogimara and Sitabenga Caves

🚨 Fight against cyber bullying 🚨