घुट - घुट कर जीना बहुत हुआ,अब तो आवाज़ उठाना है,
चुप- चुप कर सहना बहुत हुआ,अब तो थोड़ा चिल्लाना है,
किसमत के भरोसे बैठ चुके, अब तो एक कदम बड़ाना है,
उम्मीद का दामन थाम,हमें चट्टानों से लड़ जाना है..... ।
आज़ादियाँ........ मिलेंगी हमें कब, मिलेंगी हमें कब,
आज़ादियाँ ........ मिलेंगी हमें कब, मिलेंगी हमें कब,
सूखे पत्तों की तरह ,मेरा जीवन भी सूखा जाये रे,
अंधियारो भरा जीवन है, रौशनी की लौ न आए रे,
रे मुशाफिर जाए कहाँ, रसता नज़र न आए रे,
हो.... मैं जाऊं कहाँ...., कदम न मेरे उठ पाए रे....,
आज़ादियाँ....... मिलेंगी हमें कब , मिलेंगी हमें कब,
आज़ादियाँ........ मिलेंगी हमें कब, मिलेंगी हमें कब,
नीला सा ये आसमां ,रंगीन सी ये वादियां,
फूलों की भीनी सी महक,कलियों की झीनी सी चहक,
मैं कैसे भुला दू,मेरा वो बचपन, जिसमें थे मेरे कदमों के निशां....,
बंजारा... कहाँ तू जाऐ रे...,रसता नज़र न आऐ रे...,
आज़ादियाँ..... मिलेंगी हमें कब, मिलेंगी हमें कब,
आज़ादियाँ मिलेंगी हमें कब,मिलेंगी हमें कब, मिलेंगी हमें कब,
हं....ये आज़ादियाँ....... मिलेंगी ... हमें .....कब,
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