The Nobel Prize: India’s Story of Inspiration and Global Impact

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Every October, the world watches as the Nobel Prize winners are announced, celebrating the highest achievements in human knowledge, compassion, and creativity. For more than a century, this extraordinary honor has been a beacon of hope—fueling dreams, opening doors, and changing lives across the globe.   A Legacy Born in 1901 The Nobel Prize was born from the vision of Alfred Nobel, a pioneering inventor who wanted the brightest minds to be recognized for their incredible contributions. Since 1901, six categories—Physics, Chemistry, Medicine, Literature, Peace, and Economics— have become the world’s most revered stages for innovation and humanity’s progress.   The Numbers Behind Greatness ⚜️ Over 1,000 laureates have been honored worldwide. ⚜️ Physics, Medicine, and Chemistry remain the most awarded fields. ⚜️ The Peace Prize shines a spotlight on hope, peace, and human rights. ⚜️ India proudly counts 9 Nobel laureates across categories ranging from Literature to E...

आदिवासियों के महानायक (भगवान बिरसा मुंडा )

1800 से 1900 का समय आदिवासियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और एक अमिट छाप छोड़ने वाले समय के रूप में आज भी याद किया जाता है,जब अंग्रेजों का जुल्म अपने चरम पर था और ज़मीदार आदिवासियों से उन्ही की ज़मीन पर खेती के लिए कभी न चुका पाने वाला कर वसूल रहे थे।जिस समय लोगों में अज्ञानता ,गुलामी,भय अपने चरम सीमा पर थी उस अंधेरे को प्रकाश में बदलने के लिए सदी के महानायक ,आदिवासियों के मसीहा कहे जाने वाले अलौकिक छवी के धनी " भगवान बिरसा मुंडा " का जन्म 15 नवंबर 1875 को रांची जिले में  कर्मी मुंडा व सुगना मुंडा के पुत्र के रूप में हुआ।कर्मी मुंडा जो कि आयुभातु गाओं के रहनेवाली थी , दीवार मुंडा की बड़ी बेटी थी,  सुगना मुंडा का जन्म उलिहातू में हुआ था  ।
बिरसा मुंडा जी के 5 संताने थी जिसमे 3 लड़के एवं 2 लड़कियां थी ,जिनके नाम कोटा,बिरसा,कान्हू तीन भाई एवं 2 बहने जिनके नाम थे दासकिर एवं चम्पा।
बिरसा का बचपन चलकड़ में उनके माता -पिता के साथ बीता ।अन्य परिवारों की ही तरह बिरसा का बचपन भी साधारण तरीके से ही बीता जहां हरियाली की छाव ,प्रकृति का स्नेह उन्हें भरपूर मिला।बिरसा बहुत जल्दी हर कार्य मे कुशलता पा लेते थे।उन्होंने अपने हांथो से तुएल जो कि एक वाद यंत्र है,बनाना भी खुद ही सीख लिया था।बिरसा जब जंगलों में बकरियां चराने जाते तो साथ मे बाँसुरी भी बजाया करते थे, कहा जाता है कि उनकी बाँसुरी की धुन इतनी मनमोहक हुआ करती थी कि न केवल जानवर अपितु मनुष्य भी अपने आपको रोक नही पाते थे और बाँसुरी की धुन सुन उनतक  खिंचे चले जाते थे।
कई बार बिरसा बाँसुरी बजाने में इतना खो जाते थे कि उन्हें बाहरी दुनिया की खबर ही न रहती इसीके चलते कई बार तो बकरियों ने खेतों की फसल खराब कर दी और तो ओर बकरियों को भेड़िया भी उठा ले जाते थे ।इन्ही कारणों के कारण बिरसा को उनका जन्मस्थान छोड़ना पड़ा और वो अपने बड़े भाई कोंटा मुंडा के यहां चले गए वहां से खटंगा फिर जर्मन मिशनरी बुर्जु चले गए जहां उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की ।उन्होंने अपने गुरु जयपाल नाग से ज्ञान प्राप्त किया । जर्मन मिशनरी स्कूल में दाखिला लेने के लिए बिरसा मुंडा जी ने ईसाई धर्म अपना लिया हालांकि कुछ सालों के बाद ही उन्होंने उस स्कूल में जाना बंद जार दिया क्योंकि वहां आदिवासियों की संस्कृति का उपहास किया जाता था जो उन्हें पसंद नही आया ।स्कूल से निकलने के बाद बिरसा मुंडा जी के जीवन मे उस समय बड़ा बदलाव आया जब स्वामी आनंद पांडेय जी से उनकी मुलाकात हुई और उन्होंने बिरसा मुंडा की हिन्दू धर्म से उनका परिचय कराया।1895 में कुछ ऐसी घटनाएं घटीं जिसकी वजह से लोग बिरसा मुंडा जी को "भगवान बिरसा मुंडा " कह के पुकारने लगे।इतना ही नही बिरसा अब आदिवासियों के लिए भगवान का ऐसा अवतार थे जो उनके सभी कष्टों को मात्र अपनी छाया से ही ठीक कर सकते थे।इसके पीछे तो कई किस्से हैं जो आज भी आदिवासी गीतों में अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं। उन्ही में से एक किस्सा कुछ इस प्रकार है :- बात उस समय की है जब अंग्रेज़ी हुकूमतों ने आदिवासीयों से उनका जंगल छीन लिया था और इस पर अपनी हुकूमत मनवाने की पुरजोर कोशिश में थे।आदिवासियों के पास जंगल ही एकमात्र गुज़र-बसर का सहारा था , जहां उनका घर ,उनकी खेती ,उनकी फ़सलें  थी ।अंग्रेज़ी हुकूमत आदिवासियों से उनका अधिकार छीना जा रहा था ,आदिवासीयों के अस्तित्व पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा था जिसने एक एक ऐसी अलौकिक कभी न मिटने वाली चिंगारी को जन्म दिया जो हर आदिवासी के महानायक के रूप में सबके समक्ष आयी और वो महानायक थे बिरसा मुंडा।  उन्होंने 1895 में इंडियन फारेस्ट एक्ट 1882 का विरोध किया ,देखते ही देखते इस विरोध में हज़ारों की तादाद में आदिवासी शामिल होते चले गए ओर यह विरोध ओर भी उग्र होता चला गया ,अंग्रेजी हुकूमतों की पकड़ आदिवासीयों पर कमज़ोर पड़ते देख अंग्रेजी हुकूमत ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया लेकिन वे उन्हें ज्यादा दिनों तक जेल में रख नही पाए ।अब बिरसा महानायक बन चुके थे और अंग्रेजी हुकूमत भी उनसे भय खाने लगी थी।जेल से आते ही बिरसा जी ने वैष्णव धर्म अपना लिया ।इसी दौरान छोटानागपुर कोल्लाहण में चेचक की बीमारी फैली जिसका इलाज संभव न था तब बिरसा जी ने सबकी सेवा की और देखते ही देखते सभी रोगी स्वस्थ हो गए और यही कारण था कि आदिवासी समुदाय उन्हें "भगवान" का अवतार मानने लगे और उन्हें "भगवान बिरसा मुंडा " पुकारने लगे।
24 दिसंबर 1899 में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन कर रहे लोगों ने तीर से पुलिस थानों में आग लगाना शुरू कर दिया ।इस दौरान सामने से गोलियां चल रही थी और बिरसा मुंडा के साथी तीर कमान से लड़ाई लड़ रहे थे।इस लड़ाई में बड़ी संख्या में लोग मारे गए।बाद में बिरसा मुंडा जी को गिरफ्तार कर लिया गया।बिरसा मुंडा जी सन् 1900 में अंग्रेजों के खिलाफ हिंसक विद्रोह छेड़ दिया ।उन्होंने कहा कि हम ब्रिटिश शाशन तंत्र के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा करते हैं और हम नियमो का पालन नही करेंगे ।"उन्होंने कहा 'ओ गोरी चमड़ी तुम्हारा हमारे देश मे क्या काम ?छोटा नागपुर सदियों से हमारा है और तुम इसे हमसे छीन नही सकते इसलिए बेहतर होगा कि वापस अपने देश लौट जाओ नही तो लाशों के ढेर लगा दिए जाएंगे '"।एक वक्त ऐसा आया जब बिरसा मुंडा जी अंग्रेजों के सबसे बड़े दुश्मन बन गए।कोल विद्रोह,उलगुलान,संथाल विद्रोह और छोटा नागपुर विद्रोह की वजह से अंग्रेजी हुकूमत घबरा गई और इसी के चलते उन्होंने  9 जून 1990 को रांची की जेल मे बिरसा मुंडा जी को ज़हर देकर मार दिया गया । केवल 25 
साल की आयु में बिरसा जी द्वारा चलाया जाने वाला सहस्त्राब्दवादी आंदोलन ने बिहार ,झारखंड,और उड़ीसा में अपनी ऐसी छाप छोड़ी की आज भी वहां आदिवासी समुदाय बिरसा मुंडा को भगवान की तरह याद करता ।बिरसा मुंडा जी भारत के प्रथम शहीद आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और लोक नायक थे जिनकी वीरता को हर भारतीय सलाम करता है । भारतीय संसद के सेंट्रल हॉल में एकमात्र आदिवासी नेता बिरसा मुंडा जी का तेल चित्र टंगा हुआ है एवं संसद के परिसर में बिरसा मुंडा जी की प्रतिमा भी स्थापित है।





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