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Showing posts from November, 2021

Dr. D.C. Wadhwa & Ors. vs. State of Bihar & Ors. case of 1986

 The Dr. D.C. Wadhwa & Ors. vs. State of Bihar & Ors. case of 1986 is a cornerstone in the Indian judicial history, highlighting the delicate balance of power between the executive and legislative branches of government . The case stemmed from a practice that had become routine for the Bihar government: the re-promulgation of ordinances without legislative approval, a process that Dr. D.C. Wadhwa, an economics professor, found to be a subversion of democratic principles . The Supreme Court's decision in this case was a resounding affirmation of constitutional law and its supremacy over executive convenience. By declaring the practice of re-promulgating ordinances without legislative consent as unconstitutional, the court reinforced the necessity of legislative scrutiny and the impermanence of ordinances, which are meant to be emergency measures, not a backdoor for enacting laws. This landmark judgment serves as a reminder of the importance of checks and balances within

"मैं भारत का संविधान"

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मशहूर शायर व कवि हरिओम पंवार जी  भारत की राष्ट्रीय अस्मिता के गायक हिन्दी कवि हैं। वे मूलतः वीररस के कवि हैं। हरिओम पंवार जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले में सिकन्दराबाद के निकट बुटना गाँव में हुआ था। वे मेरठ विश्वविद्यालय के मेरठ महाविद्यालय में विधि संकाय में प्रोफेसर हैं। उन्हें भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं विभिन्न मुख्यमंत्रियों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें 'निराला पुरस्कार', 'भारतीय साहित्य संगम पुरस्कार', 'रश्मि पुरस्कार', 'जनजागरण सर्वश्रेष्ठ कवि पुरस्कार' तथा 'आवाज-ए-हिन्दुस्थान' आदि सम्मान प्रदान किये गये हैं। वे अपनी प्रस्तुतियों के लिए जाने जाते हैं। जब अपनी कविताओं का पाठ करते हैं तो युवाओं के मन में जोश आ जाता है।  ।।"मैं भारत का संविधान हूं, लाल किले से बोल रहा हूं"।। उनकी बहुत मशहूर कविता है। मैं भारत का संविधान हूं, लालकिले से बोल रहा हूं मेरा अंतर्मन घायल है, दुःख की गांठें खोल रहा हूं।। मैं शक्ति का अमर गर्व हूं आजादी का विजय पर्व हूं पहले राष्ट्रपति का गुण हूं बाबा भीमराव का मन

26 नवंबर संविधान दिवस 2021की शुभकामनाएं😊🙏

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भारत का  संविधान  एकमात्र लिखित संविधान है जिसमें सभी प्रभावशाली देशों से कुछ ऐसे अंश लिए गए हैं जो कि हमारे संविधान को शक्तिशाली,मजबूत,एवं सर्वरक्षक बनाता है। जैसे कि :- 1. अधिकार अमरीका के संविधान से, 2. मूल कर्तव्य रूस के संविधान  से, 3. राज्य नीति व मार्गदर्शक सिद्धांत आयरलैंड          के  संविधान  से, 4. राज्यपाल के चुनाव प्रक्रिया कनाडा के संविधान  से, 5. कटोकती में उपबंध जर्मनी के संविधान से  6. कायदा द्वारा स्थापित प्रक्रिया जापान से  और इस तरह से हमने कुछ अति महत्वपूर्ण अंश इन देशों से उधार में लिए और इसी आधार पर  संविधान को उधार का संविधान  भी कहा जाता है।  भारत का संविधान , भारत का सर्वोच्च विधान है जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। यह दिन (26 नवम्बर) भारत के  संविधान दिवस  के रूप में घोषित किया गया है | जबकि 26 जनवरी का दिन भारत में  गणतंत्र दिवस  के रूप में मनाया जाता है। भीमराव अंबेडकर  जी को भारतीय संविधान का प्रधान वास्तुकार या निर्माता कहा जाता है।भारत के संविधान का मूल आधार भारत सरकार अधि

जिंदगी

ज़िन्दगी एक सफ़र है। कैसा सफर? बिल्कुल उस नदी की तरह, जिसकी हर डगर में पत्थर हैं। पर नदी उसमे उछाल मारती है। झरने के रूप में उस बेजान पत्थर पर, खूबसूरती का एक नया आयाम रचती है। जहां से गुज़रती है रास्ते बनते जाते हैं काँटों के भी दिन बदल जाते हैं। सूखे में बहार के रंग खिल उठते हैं। और हर मोड़ पर एक नए सफर के गीत बनते हैं। इस तरह ज़िन्दगी का सफरनामा बन जाता है। और इस रंगमंच में ज़िन्दगी का एक और किरदार अपनी आभा को अमर कर जाता है।

दुनिया का सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग

इस दुनिया का सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग बच्चे की काबिलियत पर सवाल ? बच्चा कुछ बन पाएगा भी की नहीं। दूसरों से अच्छा कर पाएगा की नहीं, भीड़ में खुद की पहचान बना पाएंगे कि नहीं? कुछ गलत होने पर सवाल करें या नहिं। अरे शिकायत करने पर लोग क्या कहेंगे। घर का ई.एम.आई चुकाने के लिए पैसे नहीं है। पर बड़ी गाड़ी तो खरीदना ही पड़ेगा वरना लोग हैसियत पर ही सवाल न उठाने लगें। ठीक से बैठो,ये मत करो,ऐसे चलो,ऐसे कपड़े पहनो। ये सवाल कभी खत्म नहीं होते। हक़ीक़त तो यही है कि हम एक कठपुतली है, जिसे ये लोग..  न जाने कौन हैं ये लोग ,जो हमें...  अपने हिसाब से नचा रहें हैं। और हम बस उनके इशारों पर बिना सोचे समझे बस नाचते रहते है। क्योंकि हम इस समाज का हिस्सा हैं। हमें यहीं रहना है। अब करे भी तो क्या करें। बस इसी बात पर खुद ही धुन्दला जाते हैं। इस बेलगाम भीड़ की दौड़ का हिस्सा बन जाते हैं।