Dr. D.C. Wadhwa & Ors. vs. State of Bihar & Ors. case of 1986

 The Dr. D.C. Wadhwa & Ors. vs. State of Bihar & Ors. case of 1986 is a cornerstone in the Indian judicial history, highlighting the delicate balance of power between the executive and legislative branches of government . The case stemmed from a practice that had become routine for the Bihar government: the re-promulgation of ordinances without legislative approval, a process that Dr. D.C. Wadhwa, an economics professor, found to be a subversion of democratic principles . The Supreme Court's decision in this case was a resounding affirmation of constitutional law and its supremacy over executive convenience. By declaring the practice of re-promulgating ordinances without legislative consent as unconstitutional, the court reinforced the necessity of legislative scrutiny and the impermanence of ordinances, which are meant to be emergency measures, not a backdoor for enacting laws. This landmark judgment serves as a reminder of the importance of checks and balances within

"मैं भारत का संविधान"

मशहूर शायर व कवि हरिओम पंवार जी भारत की राष्ट्रीय अस्मिता के गायक हिन्दी कवि हैं। वे मूलतः वीररस के कवि हैं।
हरिओम पंवार जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले में सिकन्दराबाद के निकट बुटना गाँव में हुआ था। वे मेरठ विश्वविद्यालय के मेरठ महाविद्यालय में विधि संकाय में प्रोफेसर हैं। उन्हें भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं विभिन्न मुख्यमंत्रियों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें 'निराला पुरस्कार', 'भारतीय साहित्य संगम पुरस्कार', 'रश्मि पुरस्कार', 'जनजागरण सर्वश्रेष्ठ कवि पुरस्कार' तथा 'आवाज-ए-हिन्दुस्थान' आदि सम्मान प्रदान किये गये हैं।
वे अपनी प्रस्तुतियों के लिए जाने जाते हैं। जब अपनी कविताओं का पाठ करते हैं तो युवाओं के मन में जोश आ जाता है। 
।।"मैं भारत का संविधान हूं, लाल किले से बोल रहा हूं"।।
उनकी बहुत मशहूर कविता है।

मैं भारत का संविधान हूं, लालकिले से बोल रहा हूं
मेरा अंतर्मन घायल है, दुःख की गांठें खोल रहा हूं।।
मैं शक्ति का अमर गर्व हूं
आजादी का विजय पर्व हूं
पहले राष्ट्रपति का गुण हूं
बाबा भीमराव का मन हूं
मैं बलिदानों का चन्दन हूं
कर्त्तव्यों का अभिनन्दन हूं
लोकतंत्र का उदबोधन हूं
अधिकारों का संबोधन हूं
मैं आचरणों का लेखा हूं
कानूनी लक्ष्मन रेखा हूं
कभी-कभी मैं रामायण हूं
कभी-कभी गीता होता हूं
रावण वध पर हंस लेता हूं
दुर्योधन हठ पर रोता हूं
मेरे वादे समता के हैं
दीन दुखी से ममता के हैं
कोई भूखा नहीं रहेगा
कोई आंसू नहीं बहेगा
मेरा मन क्रन्दन करता है
जब कोई भूखा मरता है
मैं जब से आजाद हुआ हूं
और अधिक बर्बाद हुआ हूं
मैं ऊपर से हरा-भरा हूं
संसद में सौ बार मरा हूं

मैंने तो उपहार दिए हैं
मौलिक भी अधिकार दिए हैं
धर्म कर्म संसार दिया है
जीने का अधिकार दिया है
सबको भाषण की आजादी
कोई भी बन जाये गांधी
लेकिन तुमने अधिकारों का
मुझमे लिक्खे उपचारों का
क्यों ऐसा उपयोग किया है
सब नाजायज भोग किया है
मेरा यूं अनुकरण किया है
जैसे सीता हरण किया है।

मैंने तो समता सौंपी थी
तुमने फर्क व्यवस्था कर दी
मैंने न्याय व्यवस्था दी थी
तुमने नर्क व्यवस्था कर दी
हर मंजिल थैली कर डाली
गंगा भी मैली कर डाली
शांति व्यवस्था हास्य हो गयी
विस्फोटों का भाष्य हो गयी
आज अहिंसा बनवासी है
कायरता के घर दासी है
न्याय व्यवस्था भी रोती है 
गुंडों के घर में सोती है
पूरे कांप रहे आधों से
राजा डरता है प्यादों से
गांधी को गाली मिलती है
डाकू को ताली मिलती है
क्या अपराधिक चलन हुआ है
मेरा भी अपहरण हुआ है
मैं चोटिल हूं क्षत विक्षत हूं 
मैंने यूं आघात सहा है
जैसे घायल पड़ा जटायु
हारा थका कराह रहा है
जिन्दा हूं या मरा पड़ा हूं, अपनी नब्ज टटोल रहा हूं
मैं भारत का संविधान हूं, लालकिले से बोल रहा हूं।।
मेरे बदकिस्मत लेखे हैं
मैंने काले दिन देखें हैं
मेरे भी जज्बात जले हैं
जब दिल्ली गुजरात जले हैं
हिंसा गली-गली देखी है
मैंने रेल जली देखी है
संसद पर हमला देखा है
अक्षरधाम जला देखा है
मैं दंगों में जला पड़ा हूं
आरक्षण से छला पड़ा हूं
मुझे निठारी नाम मिला है
खूनी नंदीग्राम मिला है
माथे पर मजबूर लिखा है
सीने पर सिंगूर लिखा है
गर्दन पर जो दाग दिखा है
ये लश्कर का नाम लिखा है
मेरी पीठ झुकी दिखती है
मेरी सांस रुकी दिखती है
आंखें गंगा यमुना जल हैं
मेरे सब सूबे घायल हैं
माओवादी नक्सलवादी
घायल कर डाली आजादी
पूरा भारत आग हुआ है
जलियांवाला बाग़ हुआ है
मेरा गलत अर्थ करते हो
सब गुणगान व्यर्थ करते हो
खूनी फाग मनाते तुम हो
मुझ पर दाग लगाते तुम हो
मुझको वोट समझने वालो
मुझमे खोट समझने वालो
पहरेदारो आंखें खोलो
दिल पर हाथ रखो फिर बोलो
जैसा हिन्दुस्तान दिखा है
वैसा मुझमे कहां लिखा है

वर्दी की पड़ताल देखकर
नाली में कंकाल देखकर
मेरे दिल पर क्या बीती है
जिसमे संप्रभुता जीती है
जब खुद को जलते देखा है
ध्रुव तारा चलते देखा है
जनता मौन साध बैठी है
सत्ता हाथ बांध बैठी है
चौखट पर आतंक खड़ा है
दिल में भय का डंक गड़ा है
कोई खिड़की नहीं खोलता
आंसू भी कुछ नहीं बोलता
सबके आगे प्रश्न खड़ा है
देश बड़ा या स्वार्थ बड़ा है
इस पर भी खामोश जहां है
तो फिर मेरा दोष कहां है

संसद मेरा अपना दिल है
तुमने चकनाचूर कर दिया
राजघाट में सोया गांधी
सपनों से भी दूर कर दिया
राजनीति जो कर दे कम है
नैतिकता का किसमें दम है
आरोपी हो गये उजाले
मर्यादा है राम हवाले
भाग्य वतन के फूट गए हैं
दिन में तारे टूट गए हैं
मेरे तन मन डाले छाले
जब संसद में नोट उछाले

जो भी सत्ता में आता है
वो मेरी कसमें खाता है
सबने कसमों को तोड़ा है
मुझको नंगा कर छोड़ा है
जब-जब कोई बम फटता है
तब-तब मेरा कद घटता है
ये शासन की नाकामी है
पर मेरी तो बदनामी है

दागी चेहरों वाली संसद
चम्बल घाटी दीख रही है
सांसदों की आवाजों में
हल्दी घाटी चीख रही है
मेरा संसद से सड़कों तक
चीर हरण जैसा होता है
चक्र सुदर्शनधारी बोलो
क्या कलयुग ऐसा होता है

मुझे तवायफ के कोठों की
एक झंकार बना डाला है
वोटों के बदले नोटों का
एक दरबार बना डाला है
मेरे तन में अपमानों के
भाले ऐसे गड़े हुए हैं
जैसे शर सैया के ऊपर 
भीष्म पितामह पड़े हुए हैं
मुझको धृतराष्ट्र के मन का
गोरखधंधा बना दिया है
पट्टी बांधे गांधारी मां
जैसा अंधा बना दिया है

मेरे पहरेदारों ने ही
पथ में बोये ऐसे कांटें
जैसे कोई बेटा बूढ़ी
मां को मार गया हो चांटे
छोटे कद के अवतारों ने 
मुझको बौना समझ लिया है
अपनी-अपनी खुदगर्जी के
लिए खिलौना समझ लिया है

।।मैं लोहू में लथ पथ होकर जनपथ हर पथ डोल रहा हूं
मैं भारत का संविधान हूँ लालकिले से बोल रहा हूं।।


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