जिंदगी

ज़िन्दगी एक सफ़र है।
कैसा सफर?
बिल्कुल उस नदी की तरह,
जिसकी हर डगर में पत्थर हैं।
पर नदी उसमे उछाल मारती है।
झरने के रूप में उस बेजान पत्थर पर,
खूबसूरती का एक नया आयाम रचती है।
जहां से गुज़रती है रास्ते बनते जाते हैं
काँटों के भी दिन बदल जाते हैं।
सूखे में बहार के रंग खिल उठते हैं।
और हर मोड़ पर एक नए सफर के गीत बनते हैं।
इस तरह ज़िन्दगी का सफरनामा बन जाता है।
और इस रंगमंच में ज़िन्दगी का एक और किरदार
अपनी आभा को अमर कर जाता है।

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