🌟वेदिक दीपावली श्रृंखला | Poornima Gontiya

🌟 वेदिक दीपावली श्रृंखला | Poornima Gontiya Author | Creative Thinker | Voice of Inspiration 🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅 🌼 1. तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थ: अंधकार से प्रकाश की ओर चलो। ✨ टैगलाइन: प्रकाश बनो, क्योंकि दीप आत्मा से बनता है। 🌸 2. सर्वे भवन्तु सुखिनः अर्थ: सभी सुखी हों, सभी का कल्याण हो। 💫 टैगलाइन: खुशियाँ बाँटो, तो ब्रह्मांड मुस्कुराएगा। 🌺 3. दीपं जलयेत् ज्ञानदीपं अर्थ: अज्ञान के तम में ज्ञान का दीप जलाओ। 🪔 टैगलाइन: जो जगमग भीतर करे, वही सच्ची दीपावली। 🌿 4. जय देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता अर्थ: लक्ष्मी का वास हर हृदय में है। 💰 टैगलाइन: समृद्धि केवल धन नहीं, मन की तृप्ति है। 🌼 5. ॐ शुभं करोति कल्याणम् अर्थ: शुभता और कल्याण का प्रकाश फैलाओ। ✨ टैगलाइन: हर दीप में छुपा है ईश्वर का आशीष। 🌸 6. असतो मा सद्गमय अर्थ: असत्य से सत्य की ओर चलो। 🪷 टैगलाइन: सत्य की लौ कभी मंद नहीं होती। 🌿 7. ऋतेन सत्यं तिष्ठति अर्थ: सत्य ही जीवन की नींव है। 💫 टैगलाइन: दीप सत्य का, जीवन ज्योतिर्मय। 🌺 8. शुभं अस्तु सर्वजनाय अर्थ: सबके लिए मंगल की कामना। ✨ टैगलाइन: जो सबका सोचता है, व...

मनोज अग्रवाल भारत का वो नया चेहरा जिसने अपने एक आईडिया से दुनियाभर के वैज्ञानिकों को अचरज में डाल दिया।

भारत के इस जीनियस छात्र का नाम है मनोज अग्रवाल जिसने करोड़ों रुपये के ऑफर को इसलिए त्याग दिया ताकि वे भारत के हर उम्र के मरीज़ों की नज़र वापस ला सके। 

 

image source :- google


उनके इस नए तरीके की खोज के लिए उन्हें शीर्ष मेडिकल पुरुस्कार से नवाजा गया। इतनी कम उम्र में इतनी कमाल की सोच रखने वाले इस भारतीय वैज्ञानिक को हमारा सलाम।

All india news की रिपोर्ट के अनुसार 

2020 की बसंत में यूरोपियन ऑप्थेल्मोलॉजी कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में एक बहुत ही अविश्वसनीय घटना हुई। पूरे हॉल में उपस्थित विशेषज्ञों ने 10 मिनट तक स्पीच दे रहे उस लड़के को खड़े होकर सम्मान दिया। इस लड़के का नाम था मनोज अग्रवाल और यह एक भारत का मेडिकल छात्र था। इसी लड़के ने अंधेपन से बचाव के लिए नज़र वापस लाने का एक अनोखा फॉर्मूला इजाद किया था।

इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सवश्रेष्ठ शोधकर्ताओं ने मनोज के इस बेमिसाल आईडिया को अमल में लिया है। तथा इंस्टिट्यूट ऑफ ऑप्थेल्मोलॉजी और मेडिकल रिसर्च के दूसरे संस्थानों के विशेषज्ञ भी इस दवा के विकास में शामिल हुए। यह नई दवा अभी तक बहुत अच्छे परिणाम दे रही है।

#इस रिपोर्ट के अनुसार हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि यह दावा कैसे लाखों लोगों को आँखों के लिए एक वरदान साबित होगी और इस दवा को भारत के लोग इसे अच्छे डिस्काउंट पर कैसे पा सकते हैं।

रिपोर्टर के सवाल और जवाब इस कॉलम में दिए जा रहे हैं।

आप दुनिया के टॉप टेन स्मार्ट मेडिकल स्टूडेंट्स में से एक हैं। ऐसा क्या था कि आपने नज़र खराब होने की समस्या पर काम किया?

मुझे इसके कारण पर ज्यादा बात करना पसंद नहीं है और इसके लिए मेरी प्रेरणा थोड़ी निजी थी। कुछ साल पहले मेरी माँ की नज़र अचानक कमजोर होने लग गई थी। उन्हें न चश्मे से और न कांटेक्ट लैंस से दिख रहा था और उनकी नज़र और कमजोर होती जा रही थी। डॉक्टर ने तो उनका ऑपरेशन करने का फैसला कर लिया था लेकिन ऑपरेशन के एक हफ्ते पहले ही पता चला कि उनकी लगातार कमजोर होती नज़र के पीछे लेंस और फ़ॅन्डॅस में ठीक से रक्त की सप्लाई न होनी का कारण था। और इसलिए ऑपरेशन का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था।

इसी कंडीशन के कारण कुछ साल पहले मेरी दादी भी पूरी अंधी हो गई थीं। और तभी मैंने आंख की बीमारियों के बारे में पढ़ाई शुरू कर दी। जब मुझे पता चला कि दवा की दुकानों में बिकने वाली दवाइयां न सिर्फ बेकार होती है इनसे नुकसान भी हो सकता है तो मैं हैरान रह गया। इन दवाओं से तो समस्या और भी बढ़ जाती है। मेरी माँ रोज यही दवाइयां खाती थी।

पिछले 3 सालों से मैं इस विषय में पूरा डूबा हुआ हूं। वास्तव में जब मैं अपनी थीसिस लिख रहा था तभी मुझे नज़र सुधारने के इस नए तरीके का आइडिया आया। मैं जानता था यह बहुत ही नई चीज थी लेकिन यह कभी नहीं सोचा था कि इससे मेडिकल और बिजनेस फील्ड में इतनी हलचल मच जाएगी।

आप क्या कहना चाहते हैं?

जैसे ही मेरे नए तरीके के बारे में लेख प्रकाशित हुआ तो मुझे कई इन्वेस्टर्स के फोन आने लगे जो इस आइडिया को खरीदना चाहते थे। सबसे पहले मुझे एक फ्रेंच कंपनी ने 1,20,000 यूरो का ऑफर दिया। एक अमेरिकन फार्मास्यूटिकल होल्डिंग कंपनी ने तो मेरे आइडिया को खरीदने के लिए 3.30 करोड़ डॉलर तक की पेशकश कर डाली। मैंने परेशान होकर अपना फोन नंबर बदल दिया और सोशल मीडिया से भी कटने लगा क्योंकि मुझे हर जगह से ढेरों ऑफर भी ऑफर आने लगे थे।

जहां तक मेरी जानकारी है, अपने अपना फॉर्मूला नहीं बेचा?

यह सच है। देखिए यह सुनने में थोड़ा अप्रिय लग सकता है लेकिन मैंने इसे इसलिए नहीं बनाया है ताकि किसी दूसरे देश के अमीर लोग और भी ज्यादा अमीर हो सके। यदि मैं इस फार्मूला को विदेश में बेच दूं तो जानते हैं क्या होगा? ये लोग इस फार्मूला का पेटेंट करा लेंगे और दूसरों को इस दवा को बनाने से रोक देंगे। इसके बाद इसके रेट बढ़ा दिए जाएंगे। मेरी उम्र अभी कम है लेकिन मैं बेवकूफ नहीं हूं। इस तरह तो आम आदमी इसे कभी खरीद ही नहीं पाएगा। मुझे कई विदेशी डॉक्टरों ने कहा कि इस तरह की दवाई की कीमत कम से कम ₹2,00,000 होना चाहिए। अब बताइए दो लाख रुपए की दवा आखिर भारत में कौन खरीद पाएगा?”

जब मुझे एक नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट से भारत के मार्केट के लिए ही दवाई विकसित करने का ऑफर मिला तो मैं तुरंत तैयार हो गया। मैंने इंस्टिट्यूट ऑफ ऑप्थेल्मोलॉजी की टीम के साथ काम किया जो एक बहुत ही बढ़िया अनुभव था। अब इसके क्लीनिकल ट्रायल पूरे हो चुके हैं और दवा हर किसी के लिए उपलब्ध है।

यह पूरा प्रोजेक्ट प्रोफेसर विवेक कपूर की देखरेख में हुआ था जो मुंबई के एक प्राइवेट मेडिकल सेंटर में आंखों के डॉक्टर है। हमने उनसे इस नई खोज के बारे में जानकारी देने को कहा।





Comments

Popular posts from this blog

Is the Sanctity of Parliamentary Debate, Which Lies at the Core of Democratic Decision-Making, Being Compromised?

The Jogimara and Sitabenga Caves

🚨 Fight against cyber bullying 🚨