Quantum Mechanics at Scale: The 2025 Nobel Prize in Physics and the Rise of Engineered Quantum Reality

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  The   2025 Nobel Prize in Physics   stands as a landmark recognition in the ongoing evolution of quantum science. Awarded to   John Clarke ,   Michel Devoret , and   John Martinis , the prize honors their groundbreaking demonstration that   quantum mechanics isn’t confined to the microscopic;  it can govern large, engineered systems operating at macroscopic scales.                                     Their pioneering work, initiated at the  University of California, Berkeley  in the mid-1980s, transformed one of physics’ deepest philosophical questions into a tangible engineering reality. Can macroscopic systems composed of countless particles display quantum behavior such as tunneling, coherence, and quantization? Clarke, Devoret, and Martinis answered with an emphatic  yes . From Josephson Junctions to Artificial Atoms At the core of their ...

चौसठ योगिनी मंदिर जबलपुर

भारत के इतिहास की बात की जाए तो इनमें सबसे पहले यहां के सांस्कृतिक विरासत एवं धरोहरों की खूबसूरत बनावट, नक्काशी एवं कला की तरफ ध्यान जाता है। ट्रैवल ट्राइंगल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत देश में कुल 96 करोड़ हिंदुओं की आबादी के बीच 20 लाख से ज्यादा मंदिर हैं। सबसे ज्यादा करीब तीन लाख मंदिर तमिलनाडु में हैं।  पूरे भारत में कुल चार चौसठ योगिनी मंदिर हैं। जिनमें से 2 मंदिर ओडिशा के हीरापुर और रानीपुर गाँव में है और बांकी के 2 मध्यप्रदेश के मुरैना और खजुराहो में सदियों से मौजूद है। लेकिन मध्य प्रदेश के मुरैना में स्थित चौसठ योगिनी मंदिर सबसे प्राचीन और रहस्यमयी है। भारत के सभी चौसठ योगिनी मंदिरों में यह इकलौता मंदिर है जो अभी तक बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि प्राचीन भारत में था। 

इतिहास के पन्नों से.....
इतिहासकारो के अनुसार भेड़ाघाट स्थित चौसठ योगिनी मंदिर का निर्माण 10वी शताब्दी में हुआ। यह मंदिर त्रिपुरी के कलचुरि वंश के राजा युवराज द्वितीय द्वारा बनवाया गया था,चौसठ योगिनी मंदिर में कुल 150 सीढ़ियां हैं। इतिहासकारों के अनुसार मंदिर के सैनटोरियम में गोंड रानी दुर्गावती की मंदिर की यात्रा से संबंधित एक शिलालेख भी मौजूद है। मान्यता है कि यहां एक सुरंग भी है जो चौंसठ योगिनी मंदिर को गोंड रानी दुर्गावती के महल से जोड़ती है। इस सुरंग को अब पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। यह मंदिर  एक विशाल परिसर में फैला हुआ है। मंदिर की ऊंचाई पर पहुँचते ही चारों ओर हरियाली तथा माँ नर्मदा की बहती धारा एक अद्भुत दृश्य प्रकट करती है। मंदिर की हर एक दीवार, स्तम्भ पर मनमोहक कारीगिरी किसी का भी ध्यान आकर्षित करने में सक्षम है।
करीब 70 फुट की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव व मां पार्वती की नंदी पर वैवाहिक वेशभूषा में बैठे हुए पत्थर की प्रतिमा स्थापित है। विश्व प्रसिद्ध भेड़ाघाट के नजदीक स्थित चौसठ योगिनी मंदिर सभवतः भारत का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहाँ भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की प्रतिमा स्थापित है। 

मंदिर की रक्षा आज भी करती हैं अलौकिक शक्तियाँ

कहा जाता है की जब औरंगजेब  इस मंदिर को छतिग्रस्त करने के इरादे से आया तब उसने सभी मूर्तियों को छिन्न- भिन्न कर दिया लेकिन जैसे ही वह गर्भग्रह के अंदर जाने के लिए पहुंचा उसे कुछ चमत्कारी आलौकिक शक्तियों का आभास हुआ और यह सब देख औरंगजेब गर्भगृह में प्रवेश न कर सका और वह वहाँ से चुपचाप वापस चला गया । तब से आज तक इस मंदिर की रक्षा करती हैं अलौकिक शक्तियां।

मंदिर की बनावट 
मंदिर के चारों तरफ़ करीब दस फुट ऊंची गोलाई में चारदीवारी बनाई गई है, जो ग्रेनाइट पत्थरों की बनी है तथा मंदिर में प्रवेश के लिए केवल एक तंग द्वार बनाया गया है। चारदीवारी के अंदर खुला प्रांगण है, जिसके बीचों-बीच करीब डेढ़-दो फुट ऊंचा और करीब 80 - 100 फुट लंबा एक चबूतरा बनाया गया है। चारदीवारी के साथ दक्षिणी भाग में मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर का एक कक्ष जो सबसे पीछे है, उसमें शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित है। इसके आगे एक बड़ा-सा बरामदा है, जो खुला है। बरामदे के सामने चबूतरे पर शिवलिंग की स्थापना की गई है, जहां पर भक्तजन पूजा-पाठ करते हैं।

चौसठ योगिनी मंदिर पर प्रचलित कथाएं

1. चौसठ योगिनी मंदिर के बारे मे बहुत सी कथाएँ प्रचलित है।उन्हीं में से एक पुराणों में वर्णित एक कथा माँ आदिशक्ति महाकाली की भी है। इस कथा के अनुसार ये सभी योगिनी माँ आदिशक्ति काली का अवतार है । पुराणों में वर्णित है, कि घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने ये सभी चौसठ अवतार धारण किए थे। यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पर्वती की सहेलियां है।

2. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार ये चौसठ योगिनी भगवान श्री कृष्ण की नासिका के छेद से ये प्रकट हुई है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार स्त्री के बिना पुरूष अधूरा है, वही पुरुष के बिना स्त्री अधूरी है। दोनो ही एक दूसरे के पूरक होते है। एक संपूर्ण पुरुष 32 कलाओ से युक्त होता है तो वही एक संपूर्ण स्त्री भी 32 कलाओ से युक्त होती है और दोनों के संयोग से बनते है 32 + 32 = 64, तो ये माना जा सकता है 64 योगिनी शिव और शक्ति जो सम्पूर्ण कलाओ से युक्त है, उन के मिलन से प्रकट हुई है।

3.  प्रचलित मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर 700 साल पुराना है। लेकिन अचंभित करने वाली बात यह है की यहाँ के गर्भगृह में एक नहीं बल्कि दो-दो शिवलिंग स्तिथ हैं। यह मंदिर प्राचीन काल से ही तंत्र साधना के लिए मशहूर है, कुछ इतिहासकारों का तो यह भी मानना है कि वर्षों से तांत्रिक यहाँ एक विशेष पूजा किया करते थे और यहीं पर उन्हें अलौकिक शक्तियां प्राप्त होती थी। 

4. एक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती भ्रमण के लिए निकले तो उन्होंने भेड़ाघाट के निकट एक ऊंची पहाड़ी पर विश्राम करने का निर्णय किया. इस स्थान पर सुवर्ण नाम के ऋषि तपस्या कर रहे थे जो भगवान शिव को देखकर प्रसन्न हो गए और उनसे प्रार्थना की कि जब तक वो नर्मदा पूजन कर वापस न लौटें तब तक भगवान शिव उसी पहाड़ी पर विराजमान रहें. नर्मदा पूजन करते समय ऋषि सुवर्ण ने विचार किया कि यदि भगवान शिव हमेशा के लिए यहां विराजमान हो जाएं तो इस स्थान का कल्याण हो जाएगा और इसी के चलते ऋषि सुवर्ण ने नर्मदा में समाधि ले ली. इसके बाद से ही आज भी इस पहाड़ी पर भगवान शिव की कृपा भक्तों को प्राप्त होती है. माना जाता है कि नर्मदा को भगवान शिव ने अपना मार्ग बदलने का आदेश दिया था ताकि मंदिर पहुंचने के लिए भक्तों को कठिनाई का सामना न करना पड़े। इसके बाद संगमरमर की कठोर चट्टानें कोमल हो गईं थीं जिससे माँ नर्मदा को अपना मार्ग बदलने में किसी भी तरह असुविधा नहीं हुई और आज भी माँ नर्मदा का अलौकिक रूप मंदिर की ऊंचाई से प्रत्यक्ष दिखाई देता है।

इस मंदिर के बारे में यह भी कहा जाता है की ब्रिटिश आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस ने दिल्ली में बना संसद भवन इसी मंदिर की डिज़ाइन से प्रेरित होकर बनाया था, लेकिन अभी तक इस बात का कोई पुख्ता या लिखित सबूत नहीं मिला है।

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