राही

गुम्सुम राहों का साथी
हर धर्म से परे हर रीत से अंजान
यूँ ही कहीं मिलते है नये चेहरे अंजान
सबके रास्ते एक पर मंज़िले अनेक
सब मिलते बिछड़ते इन्ही रास्तों पर
कोई पराया यहाँ अपनों को पाता है
तो कोई अपनों से बेगाना हो जाता है
किसी का दर्द आँसू बयां कर देते है
तो कोई सिस्कियों को मुस्कुराहट से छिपा लेता है
सब दर्द में होते हुए भी खुशी की चादर ओड़ बेवजह चलते है
तो कोई मुस्कुराहट के नकाब मे अपने सपनों को कुचल्ते है
पर रुकता कोई नही सब चलते जाते है
ज़िन्दगी की रस्मों को निभाते जाते है
कहीं कोई चोट लगे तो मुस्कुरा कर सब सह जाते है
पर वो रुकते नही बस किसी न किसी डगर पर
ये राही चलते जाते है...

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